20090624

पर्यटन उद्योग पर पाक कूटनीति का एक और हमला

राजस्थान और हिमाचल प्रदेश का पर्यटन निशाने पर
-राहुल सेन
जयपुर। विश्वव्यापी मंदी और मुंबई पर हुए आतंकवादी हमले की भी मार से जूझ रहे भारतीय पर्यटन उद्योग पर अब पाकिस्तानी कूटनीति का एक और हमला होने जा रहा है, खासकर राजस्थान और हिमाचल प्रदेश के पर्यटन को निशाने पर रखते हुए किया गया है।
पाकिस्तान ने ठीक पर्यटन सीजन से पहले यह प्रचारित करना शुरू किया है कि तालीबान अब भारत के पश्चिमी और उत्तरी क्षेत्रों में अपने अपने ठिकाने बनाने की तैयारी कर रहा है। पर्यटन उद्योग को पीटने के लिए इससे पहले दिसंबर 2008 में मुंबई के पर्यटकों से भरे ताज होटल पर आतंकवादी हमला हो चुका है, जिसका असर अभी तक उद्योग पर है।
पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह मेहमूद कुरैशी ने 'फाइनेशियल टाइम्स' को दिए एक साक्षात्कार में कहा कि तालीबान के खिलाफ सैन्य अभियान पूरा करने के बाद उसे फाटा और स्वात घाटी में पुर्ननिर्माण के लिए और अधिक धन चाहिए। अगर आतंकवाद के खिलाफ उसे आर्थिक मदद नही मिली तो तालबान भारत और फारस तक फैल सकता है। भारत में इसके ठिकाने उत्तरी और पश्चिमी क्षेत्र होंगे।
उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान ओसामा बिन लादेन और तालीबान के आतंक को खत्म करने के नाम पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय और विशेषकर अमरीका से भारी मात्रा में आर्थिक मदद प्राप्त कर चुका है। वह यह भी जान चुका है कि जब तक ओसामा नहीं मारा जाता तब तक यह वसूली जारी रखी जा सकती है। तालीबान या ओसाम के अंत के साथ ही यह आर्थिक मदद बंद हो जाएगी।
फिलहाल अमरीका से तालीबान से निपटने के लिए जमकर आर्थिक मदद वसूल रहे पाकिस्तान ने भारत में तालीबान के फैलने का डर दिखाकर कहा है कि आतंकवाद से निबटने के उसे अभी 119 अरब रुपए की जरूरत और है। इससे पाकिस्तान के कूटनितिज्ञों ने एक तीर से दो शिकार करने की कोशिश की है। एक तरफ उन्हें अंतरराष्ट्रीय समूदाय से और अधिक मदद मिल जाएगी साथ ही वे भारत के पर्यटन उद्योग को नुक्सान पहुंचा कर हिस्दुस्तान को आर्थिक नुक्सान पहुंचाया जा सकेगा जो काम अब तक भारत में केवल जाली नोट पहुंचा कर ही किया जाता रहा है।
सब जानते हैं कि भारतीय पर्यटन उद्योग मंदी के दौर से गुजर रहा है। पर्यटन उद्योग पर दिसंबर 2008 में मुंबई पर हुए आतंकवादी हमले की भी मार के बाद पर्यटन उद्योग पर इसका काफी बुरा असर पड़ा। दरअसल पिछले साल अक्टूबर से इस साल मार्च के बीच विदेशी पर्यटकों से होने वाली कमाई में 4।4 फीसदी की कमी आई।

20090602

पर्यटकों से आबाद हुआ कुल्लू

कुल्लू। देशी-विदेशी पर्यटकों की पसंदीदा नगरी मनाली इन दिनों फुल चल रही है। हिमाचल की इस पर्यटक नगरी के पास और पर्यटकों को खपाने की जगह अब अगले कुछ दिनों तक नहीं बची है। हालत यह है कि मनाली के लगभग सभी होटल भरे हुए हैं। पर्यटन निगम के होटलों में 15 जून तक कोई कमरा खाली नहीं है।
आन लाइन बुकिंग कर रहे पर्यटकों को इंटरनेट में भी होटल न मिल पाने के कारण अपना कार्यक्रम स्थगित करना पड़ रहा है। जो पर्यटक बिना बुकिंग करवाए आ रहे हैं वह मंदिरों के सराय व गुरुद्वारों में रातें काट रहे हैं।
यहीं नहीं इस बार कुल्लू व मनाली के बीच रास्ते में पड़ने वाले होटल भी पैक हैं। स्थानीय होटल व्यावसायियों का कहना है कि इस बार मई के शुरूआती दौर में ही पर्यटकों ने कुल्लू-मनाली का रुख कर लिया है। निचले इलाकों में बढ़ी गर्मी के बाद से पर्यटकों की संख्या में काफी बढ़ोतरी हुई है।
सुबह से देर रात तक मनाली माल रोड में पर्यटकों का तांता लगा रहता है। वहीं दुकानें भी देर रात तक खुली रहती हैं।

20090429

राजस्थान में सितम्बर तक मौजा ही मौजा




आर.टी.डी.सी.
का स्पेशल मानसून पैकेज


मूमल नेटवर्क, जयपुर। तेज गर्मी में ठंड़े पड़े पर्यटन व्यवसाय को इस बार सर्दी के सीजन से पहले ही गति देने के लिए राजस्थान पर्यटन विकास निगम (आर.टी.डी.सी।) ने इस बार स्पेशल मानसून पैकेज तैयार किए हैं। आर.टी.डी.सी. का मानना है कि राजस्थान पर्यटन के लिए विदेशी पर्यटक भले ही सर्दियों का समय चुनते हों, लेकिन स्थानीय भारतीय पर्यटक मानसून के मौसम का भी जम कर लुत्फ उठाना जानता है। ऐसे में यह पैकेज उन्हीं के टेस्ट को प्रमुखता देते हुए तैयार किया गया है।

इसके लिए जुलाई 09 से सितम्बर 09 तक प्रदेश कि विभिन्न लोकप्रिय डेस्टीनेशन्स में रहने के किराए की आकर्षक रेंज पेश की है। इसके तहत माउण्ट आबू में 550 रु. से 1250 रु., सरिस्का में 600 रु. से 1750 रु. (शुक्रवार से रविवार तक के तीन दिन छोड़कर), झूमर बावडी सवाईमाधोपुर में 1150 रु. से 2000 रु., तथा विनायक सवाईमाधोपुर में 650 रु. से 1100 रु. तक की रेंज होगी। इस किराए में कमरे के किराए के साथ 125 रु. प्रति व्यक्ति के नाश्ते का मूल्य भी शामिल है। हां, यह भी नोट करें कि इस मूल्य में टेक्स शामिल नहीं है, वह अलग से लगेगा।


उल्लेखनीय है कि यह सभी डेस्टीनेशन्स राजस्थान की काफी मंहगे बजट वाली डेस्टीनेशन्स मानी जाती हैं, लेकिन विदेशी पर्यटकों के आने से पहले स्थानीय भारतीय पर्यटकों को यह मौका 'घर के लोगों' को पूरा लाभ दिए जाने की मंशा से दिया जा रहा है।इस मानसून टूर की बुकिंग के लिए फोन नम्बर 0141-5114766 पर या 011-23381884 पर सम्पर्क किया जा सकता है। इसके साथ ही आर.टी.डी.सी. की ई-मेल croho@rtdc.in पर भी सूचना दी जा सकती है। अधिक विवरण के लिए आर.टी.डी.सी. की वेब साईट http://www.rtdc.in/ का जायजा लिया जा सकता है।

20090418

नही बदला नजरिया विदेशिया का

पर्यटन की दुनियां में हो रही हलचलों पर नजर दौड़ाते हुए अचानक नजर एक पुरानी फिल्म पर ठहर गई। यह फिल्म जयपुर आए किसी विदेशी पर्यटक जैम्स पैट्रिक ने सन् 1932 में तैयार की थी। इस ब्लेक एडं व्हाट फिल्म का नाम रखा गया कलरफुल जयपुर 1932, इस फिल्म का वीडियो यूट्यूब की गैलेरी में उपलब्ध है।

लगभग आठ मिनट की इस फिल्म में वैसे तो आजादी से भी 15 साल पुराना जयपुर देखकर रोमांचित हुआ जा सकता है, लेकिन जो सबसे ज्यादा महसूस होने वाली बात लगी वह थी, जयपुर को देखने का विदेशी नजरिया। यह एक चौंकाने वाली बात है कि आज 75 साल बाद भी विदेशी पर्यटक के जयपुर दर्शन के नजरिए में कोई अंतर नहीं आया है। फिल्म में सन् 1932 में भी वही सब शूट किया गया है, जो विदेशी पर्यटकों द्वारा अब 2009 में भी किया जा रहा है।

फिल्म की शुरूआत त्रिपोलिया बाजार के नजारों से होती है। सड़क पर चल रहे यातायात में सामान से लदी बैलगाडिय़ां पर्यटक का मुख्य विषय है। सड़क पर काम करते सफाईकर्मी, बाजार की दुकानों के ऊपर कंगूरों पर बैठे बंदर, टीन शैड पर जा चढ़ी बकरियां, सड़क से गुजरती महिलाओं के परिधान, पुरुषों के साफे और टोपियां, सड़क लगी ताजा सब्जी की दुकानें, उनके आसपास व सड़क पर मंडराते आवारा पशु, कबूतरों के लिए डाले गए दानों को चुगते पक्षी, बेरोकटोक विचरते मोर, बंदरों के आगे खाने का सामान डालकर उनकी झीना-झपटी के दृश्य, हाथी पर सवारी करते साथी पर्यटकों का फिल्मांकन, मदारी, भिखारी और कुल मिलाकर 1932 में भी वही सब कुछ शूट किया गया है जो आज के पर्यटक भी शूट कर रहे हैं।

फिल्म को देखने का मौका मिले तो चूकिएगा मत। कुछ उदाहरण इस बात के भी हैं कि न जयपुर की व्यवस्था में ज्यादा अंतर आया है और न ही नागरिकों और दुकानदारों के रवैये में। सांगानेरी गेट पर यातायात संचालित करने वाले कर्मचारी तैनात हैं, लेकिन एक अपनी ड्यूटी का निर्धारित स्थान छोड़कर आपस में बातचीत करने के लिए दूसरे के पास आया हुआ है। यातायात का दबाव आज की तुलना में काफी कम है, फिर भी वाहनों की रेलपेल है। तेज गति से दौड़ती ऊंट गाड़ी की एक उतनी तेजी से आ रही मोटर से हुई जोरदार भिड़ंत का दृश्य यातायात व्यवस्था की पोल यहां भी खोलता लग रहा है। सड़क पर जगह घेर कर सब्जी और अनाज की दुकानें लगाने वाले, पक्की दुकान वालों द्वारा सामने सामान रखकर पैदल चलने वालों का हक मारने की प्रवृति सन् 1932 की इस फिल्म में भी नजर आती है।

आमेर के दृश्यों में केसर क्यारी की टूटी-फूटी मुंडेर साफ नजर आती है, जो उस समय में रखरखाव की जिम्मेदारी वहन करने वाले राज कर्मचारियों का रवैया बताती है।जयपुर के मदारियों का व्यंग आज की तुलना में कहीं ज्यादा तीखा नजर आता है। एक बंदरिया को केप और कसे हुए कपड़े पहना कर जमीन पर उसी मुद्रा में लेटने की ट्रेनिंग दी गई लगती है, जिस मुद्रा में विदेशी महिला पर्यटक समुद्र के किनारे पाई जाती हैं। कुता गाड़ी में जिस बंदर परिवार को सैर सपाटे के लिए निकला बताया गया है उसका पहनावा भी बहुत कुछ ऐसा कहता लगता है,जिसका यहां उल्लेख संभव नहीं है।

आप फिल्म देखते वक्त अगर एक बंदर की टोपी, उस पर लगे चिन्ह और चश्में को गौर से देखें तो आजादी से पहले की राजनीति का जायजा ले सकते हैं, खासकर इस टोपी वाले बंदर के अलावा शेष सभी बंदर अंग्रेजी कैप और टीर्शट वाले रखे गए हैं, पता नहीं क्यों? जो भी हो, मदारियों की निडऱता और व्यंग की धार आज के अनेक तथाकथितों के लिए भी दर्शनीय है। इसे देखने के लिए यूट्यूब तो है ही, नहीं हाथ आए तो गूगल के वेव सर्च पर जाकर कलरफुल जयपुर लिखिए और क्लिक करने पर सबसे ऊपर इसे ही पाएंगे।फिर भी बात नहीं बने तो ग्लोबल इमेज वक्र्स । कॉम पर भी इसे देखा जा सकता है। और इसके बाद भी नहीं मिले तो मूमल तो आपकी सेवा में है ही।

20090331

सांची के स्तूप; पास आकर देखने की चीज


बौद्ध कला की बेमिसाल कृतियां
सांची के स्तूप दूर से देखने में भले मामूली अ‌र्द्ध गोलाकार संरचनाएं लगें लेकिन इसकी भव्यता, विशिष्टता व बारीकियों का पता सांची आकर देखने पर ही लगता है। इसीलिए देश-दुनिया से बडी संख्या में बौद्ध मतावलंबी, पर्यटक, शोधार्थी, अध्येता इस बेमिसाल संरचना को देखने चले आते हैं। सांची के स्तूपों का निर्माण कई कालखंडों में हुआ जिसे ईसा पूर्व तीसरी सदी से बारहवीं सदी के मध्य में माना गया है। ईसा पूर्व 483 में जब गौतम बुद्ध ने देह त्याग किया तो उनके शरीर के अवशेषों पर अधिकार के लिए उनके अनुयायी राजा आपस में लडने-झगडने लगे। अंत में एक बौद्ध संत ने समझा-बुझाकर उनके शरीर के अवशेषों के हिस्सों को उनमें वितरित कर समाधान किया। इन्हें लेकर आरंभ में आठ स्तूपों का निर्माण हुआ और इस प्रकार गौतम बुद्ध के निर्वाण के बाद बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार इन स्तूपों को प्रतीक मानकर होने लगा।

सांची की स्थापना बौद्धधर्म व उसकी शिक्षा के प्रचार-प्रसार में मौर्यकाल के महान राजा अशोक का सबसे बडा योगदान रहा। बुद्ध का संदेश दुनिया तक पहुंचाने के लिए उन्होंने एक सुनियोजित योजना के तहत कार्य आरंभ किया। सर्वप्रथम उन्होंने बौद्ध धर्म को राजकीय प्रश्रय दिया। उन्होंने पुराने स्तूपों को खुदवा कर उनसे मिले अवशेषों के 84 हजार भाग कर अपने राज्य सहित निकटवर्ती देशों में भेजकर बडी संख्या में स्तूपों का निर्माण करवाया। इन स्तूपों को स्थायी संरचनाओं में बदला ताकि ये लंबे समय तक बने रह सकें।सम्राट अशोक ने भारत में जिन स्थानों पर बौद्ध स्मारकों का निर्माण कराया उनमें सांची भी एक था जिसे प्राचीन नाम कंकेनवा, ककान्या आदि से जाना जाता है। तब यह बौद्ध शिक्षा के प्रमुख केंद्र के रूप में विकसित हो चुका था। ह्वेन सांग के यात्रा वृत्तांत में बुद्ध के बोध गया से सांची जाने का उल्लेख नहीं मिलता है। संभव है सांची की उज्जयनी से निकटता और पूर्व से पश्चिम व उत्तर से दक्षिण जाने वाले यात्रा मार्ग पर होना भी इसकी स्थापना की वजहों में से रहा हो।

सम्राट अशोक की महारानी चन्द्र विदिशा के एक व्यापारी की पुत्री थीं, जहां से सांची की पत्थर युक्त पहाडी दिखाई देती थी। सांची का उस दौर में कितना महत्व रहा होगा इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि अशोक के पुत्र महेंद्र व पुत्री संघमित्रा श्रीलंका में धर्म प्रचार पर जाने से पूर्व यहां मठ में रहते थे, जहां पर उनकी माता का भी एक कक्ष था। हर धर्म की भांति बौद्ध कालीन संरचनाओं को उनकी मान्यताओं के अनुसार बनाया गया।

बौद्धधर्म में ईश्वरवादी सिद्धांत के स्थान पर शिक्षाओं का महत्व है। इन संरचनाओं में मंदिर से परे स्तूप एक नया विचार था। स्तूप शब्द संस्कृत व पाली से निकला माना जाता है जिसका अर्थ होता है ढेर। आरंभ में केंद्रीय भाग में तथागत [महात्मा बुद्ध] के अवशेष रख उसके ऊपर मिट्टी पत्थर डालकर इनको गोलाकार आकार दिया गया। इनमें बाहर से ईटों व पत्थरों की ऐसी चिनाई की गई ताकि खुले में इन स्तूपों पर मौसम का कोई प्रभाव न हो सके। स्तूपों में मंदिर की भांति कोई गर्भ गृह नहीं होता। अशोक द्वारा सांची में बनाया गया स्तूप इससे पहले के स्तूपों से विशिष्ट था। बौद्ध कला की सर्वोत्तम कृतियांसांची में बौद्ध वास्तु शिल्प की बेहतरीन कृतियां हैं जिनमें स्तूप, तोरण, स्तंभ शामिल हैं। इनमें स्तूप संख्या 1 सम्राट अशोक द्वारा बनवाया गया था जिसमें महात्मा बुद्ध के अवशेष रखे गए।

करीब में यहां पर दो अन्य छोटे स्तूप भी हैं जिनमें उनके दो शुरुआती शिष्यों के अवशेष रखे गए हैं। पहले स्तूप की वेदिका में जाने के लिए चारों दिशाओं में तोरण द्वार बन हैं। पूरे स्तूप के बाहर जहां पहले कठोर लकडी हुआ करती थी आज पत्थरों की रेलिंग है। अंदर वेदिका है व कुछ ऊंचाई तक जाने के लिए प्रदक्षिणा पथ है। स्तूप के गुंबद पर पत्थरों की वर्गाकार रेलिंग [हर्मिका] बनी है व शिखर पर त्रिस्तरीय छत्र है। स्तूप की वेदिका में प्रवेश के लिए चार दिशाओं में चार तोरण [द्वार] हैं। पत्थर से बने तोरणों में महात्मा बुद्ध के जीवन की झांकी व जातक प्रसंगों को उकेरा गया हैं। यह कार्य इतनी बारीकी से किया गया है के मानो कारीगरों ने कलम कूंची से उनको गढा हो। इस स्तूप के दक्षिणी तोरण के सामने अशोक स्तंभ स्थापित है। इसका पत्थर आस-पास कहीं नहीं मिलता है। माना जाता है कि 50 टन वजनी इस स्तंभ को सैकडों कोस दूर चुनार से यहां लाकर स्थापित किया गया। यहां पर एक मंदिर के अवशेष है जिसे गुप्तकाल में निर्मित माना गया है।

सांची के स्तूपों के समीप एक बौद्ध मठ के अवशेष हैं जहां बौद्ध भिक्षुओं के आवास थे। यही पर पत्थर का वह विशाल कटोरा है जिससे भिक्षुओं में अन्न बांटा जाता था। यहां पर मौर्य, शुंग, कुषाण, सातवाहन व गुप्तकालीन अवशेषों सहित छोटी-बडी कुल चार दर्जन संरचनाएं हैं।शुंग काल में सांची में अशोक द्वारा निर्मित स्तूप को विस्तार दिया गया जिससे इसका व्यास 70 फीट से बढकर 120 फीट व ऊंचाई 54 फीट हो गई। इसके अलावा यहां पर अन्य स्तूपों का निर्माण कराया। सांची में इन स्तूपों का जीर्णोद्धार लंबे समय तक चला जिसमें इसे अद्वितीय बनाने के लिए कल्पना शक्ति का इस्तेमाल किया गया। इसके बाद शुंग व कुषाण नरेशों ने अपने काल में यहां पर अन्य स्तूप निर्मित करवाए।मौर्य, शुंग, कुषाण सातवाहन व गुप्तकाल तक बौद्ध धर्म फलता फूलता रहा किन्तु इनके पतन के उपरांत राजकीय कृपादृष्टि समाप्त होने से बौद्ध धर्म का अवसान होने लगा। लेकिन बाद के शासकों ने बौद्ध स्मारकों व मंदिरों को यथावत रहने दिया।

सांची की कीर्ति राजपूत काल तक बनी रही किंतु पहले तुकरें के आक्रमण और बाद में मुगलों की सत्ता की स्थापना के बाद यह घटने लगी। औरंगजेब के काल में बौद्ध धर्म का केंद्र सांची गुमनामी में खो गया। उसके बाद यहां चारों ओर घनी झाडियां व पेड उग आए।19वीं सदी में कर्नल टेलर यहां आए तोउन्हें सांची के स्तूप बुरी हालत में मिले। उन्होंने उनको खुदवाया और व्यवस्थित किया। कुछ इतिहासकार मानते हैं उन्होंने इसके अंदर धन संपदा के अंदेशे में खुदाई की जिससे इसकी संरचना को काफी नुकसान हुआ। बाद में पुराविद मार्शल ने इनका जीणरेंद्घार करवाया। चारों ओर घनी झाडियों के मध्य सांची के सारे निर्माण का पता लगाना और उनका जीणरेंद्वार कराके मूल आकार देना बेहद कठिन था, किंतु उन्होंने बखूबी से इसकी पुरानी कीर्ति को कुछ हद तक लौटाने में मदद की।

धर्म व पर्यटन का संगम1989 में यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में शामिल होने के बाद से सांची का महत्व बहुत बढा। बौद्ध धर्म का प्रमुख केंद्र होने के कारण यहां पर देशी व विदेशी मतावलंबियों का जमावडा लगा रहता है। सांची की भव्यता को देखने को प्रतिदिन हजारों पर्यटक पहुंचते हैं जिनमें विदेशी सैलानियों की बडी संख्या होती है। इस सारे परिसर के प्रबंधन व संरक्षण का कार्य भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अधीन है। यहां का पुरातत्व संग्रहालय भी दर्शनीय है। आरंभ में वर्ष 1919 में इसे स्तूपों के निकट बनाया गया था किंतु जैसे-जैसे सामग्री की प्रचुरता होने लगी इसे 1986 में सांची की पहाडी के आधार पर नए संग्रहालय भवन में स्थानांतरित कर दिया गया। इस संग्रहालय में मौर्य, शुंग, सातवाहन, कुषाण, गुप्त कालीन प्रस्तर कला के अवशेष, मूर्तियां, शिलालेख आदि देखने को मिलते हैं। सांची के इन स्मारकों की भव्यता तो आगन्तुकों को चमत्कृत करती ही है, साथ में यहां का शांत वातावरण हर आने वाले को महात्मा बुद्ध के शांति के संदेश को समझाने में मदद देता है।

20090130

50 हजार में स्विट्जरलैंड की सैर

स्विट्जरलैंड भारतीयों के लिए सबसे पसंदीदा स्थान रहा है। कई लोग इस हकीकत में इस पसंद का ढाल लेते हैं तो कई लोग बॉलीवुड की फिल्मों में स्विट्जरलैंड को देख-देखकर आंहें भरते रहते हैं। लेकिन वो खूबसूरती ऐसी है जिसकी तरफ से नजरें फेरी नहीं जा सकती। इसी स्विट्जरलैंड को सस्ते में भी घूमा जा सकता है। स्विस टूर्स महज पचास हजार रुपये प्रति व्यक्ति में स्विट्जरलैंड की पांच दिन की सैर करा रहे हैं। इसमें दिल्ली से ज्यूरिख तक का वापसी किराया भी शामिल है। ठहरना, खाना, घूमना भी इसी किराये में शामिल है। नहीं शामिल है तो केवल वीजा फीस। स्विट्जरलैंड जाने वालों के लिए एक और भी सुविधा है, वहां ठहरने के लिए कई अपार्टमेंट भी किराये पर लिए जा सकते हैं। ये अपार्टमेंट दो हजार रुपये प्रति रात्रि से भी कम दरों पर उपलब्ध हैं। ऐसे ढाई हजार से ज्यादा अपार्टमेंट ऑनलाइन पसंद और बुक कराए जा सकते हैं। स्विट्जरलैंड में सैलानियों के लिए कई और भी सहूलियतें हैं, जैसे कि स्विस पास। स्विस ट्रैवल सिस्टम द्वारा दिए जाने वाले इन पास का मूल्य दिन के हिसाब से होता है लेकिन जितने दिन के लिए पास खरीदे जाएं, उतने दिन तक आप ट्रेन, बस, नाव, यानि हर तरह के सार्वजनिक परिवहन तंत्र में मनचाही बार आ-जा सकते हैं। साथ में अगर कोई एक भी वयस्क अभिभावक हो तो इस पास में 16 साल से कम उम्र के बच्चे मुफ्त सारे सफर कर सकते हैं। यह पास कई अन्य रियायतें भी उपलब्ध कराता है।
भारतीय सैलानी स्विट्जरलैंड आने वाले विदेशी सैलानियों में टॉप टेन में शामिल हैं। अब तो स्विट्जरलैंड 25 देशों के बीच शेनजेन करार का हिस्सा है, इसलिए वहां के लिए अलग से वीजा लेने के लिए जरूरत नहीं है। भारतीय सैलानियों द्वारा स्विट्जरलैंड में बिताई जाने वाली रातों में 2006 के मुकाबले 2007 में 16 फीसदी से ज्यादा की वृद्धि हुई है। भारतीयों के इस प्रेम को स्विट्जरलैंड के लोग भी महसूस कर रहे हैं। वहां के तमाम लोकप्रिय पर्यटन स्थल अब भारतीय रेस्तरां खोल रहे हैं, भारतीय शेफ रख रहे हैं और भारतीयों के लिए खास पैकेज पेश कर रहे हैं। स्विट्जरलैंड अब पर्यावरण के लिहाज से संतुलित पर्यटन की धारणा को बढावा दे रहा है और अपने यहां उस पर अमल भी कर रहा है। हाल ही में वहां दस नए नेचर पार्क खोले गए हैं। स्विट्जरलैंड की कल्पना हम करें तो बर्फ से लदी चोटियां, स्कीइंग, पहाडों पर चलने वाली ट्रेनें, हरी-भरी वादियां, कैसल जेहन में आते हैं।

20090106

अब सीसीडी का "कप ऑफ गुड होप"

'कैफे कॉफी डे भारत में कॉफी शॉप की विशालतम श्रृंखला है। 107 शहरों में 7 सौ से अधिक कैफे के माध्यम से लाखों युवाओं के संपर्क में आने वाले सीसीडी ने कप ऑफ गुड होप के नाम से नया प्रयास प्रारंभ किया है। कप ऑफ गुड होप-सीसीडी आपको आमंत्रित करता है कि आप आकर बेहतर कल और बेहतर भारत के लिए अपने सुझाव दें। यह प्रयास 10 जनवरी तक चलेगा। सीसीडी आपके द्वारा दिए गए विचारों सुझावों को एकत्रित कर देश के नेताओं तक पहुंचाएगा जिससे वांछित बदलाव लाया जा सके।

हाल में हुई आतंकी घटनाओं ने यह अच्छी तरह से स्पष्ट कर दिया है कि बदलाव अत्यावश्यक है और इसके लिए हम बैठकर इंतजार नहीं कर सकते हैं। हमें निर्णय लेने व्यक्तियों पर दबाव डालना होगा कि वे भी समय की नजाकत को समझते हुए समय के साथ बदले। कैफे कॉफी डे की प्रेसीडेंट मार्केटिंग विदिशा नागराज ने कहा कि देशवासियों की मनोदशा से यह स्पष्ट संकेत मिल रहा है कि बदलाव की तत्काल आवश्यकता है। हमारा यह मानना है कि भविष्य युवाओं के हाथों में है सर्वश्रेष्ठ विचार भी वहीं से आते हैं। हमें इस बात की खुशी है कि इस प्रक्रिया में हम एक सकारात्मक योगदान दे रहे हैं, समस्याऐं खड़ी करने के बजाय समाधान प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहे हैं। हमें उम्मीद है कि हमारे ग्राहक अपने विचारों को प्रस्तुत करने के इस अवसर का लाभ उठाएं और होने वाले इस अनिवार्य बदलाव का अंग बनें।