20120918

MATHURA ME MILAVAT

मथुरा में भगवान को भी नहीं छोड़ा !

मथुरा में भगवान पर भी मिलावटी दूध चढ़ाया जा रहा है। श्रद्धालु बड़े ही श्रद्धा के साथ मिलावटी दूध भगवान पर चढ़ा रहे हैं। लोगों को पता भी नहीं होता कि जो दूध ये चढ़ा रहे हैं वो मिलावटी है जिसे पीने पर आदमी की मौत भी हो सकती है। दूध को सफेद करने के लिए इसमें यूरिया मिलाया जाता है। चिकनाई के लिए रिफाइंड और झाग के लिए ईजी। साथ ही दूध में मोटी मलाई के लिए अरारोट मिलाया जाता है।
लाखों श्रद्धालु गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा लगाने आते हैं और गिरिराज जी को दूध चढ़ाते हैं। हजारों टन दूध रोज चढ़ता है। मथुरा में दूध की कमी है, इसी का फायदा मिलावटखोर उठाते हैं। महज डेढ़ सौ रुपए की लागत से मिलावटखोर 40 किलो सिंथेटिक दूध बनाते हैं यानि कम लागत में ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए ये लोगों की आस्था से खेलने से भी बाज नहीं आते हैं।
कोई पी तो नहीं रहा
पूछने पर एक स्थानीय विद्वान (?) ने अपना दर्शन व्यक्त किया कि यह दूध कोई पी तो नहीं रहा है, यह तो बस बह रहा है...और जो बह रहा है उसे तो दूध ही माना जा रहा है। वहीं मथुरा आए एक श्रद्धालु ने बताया कि हम दिल्ली से आए हैं दूध तो चढ़ाया पर असलियत जानने के बाद हमारी आस्था को बहुत चोट पहुंची। वहीं एक दूसरे श्रद्धालु ने बताया कि ये सब देखकर तकलीफ होती है कि बाहर से मथुरा आने वाले श्रद्धालु यही मिलावटी दूध भगवान पर चढ़ाते हैं।
स्थानीय लोगों का कहना है कि ऐसा नहीं है कि मथुरा में कोई दो चार लोग इस गोरखधंधे में लगे हैं।  और ऐसा भी नहीं कि पुलिस और प्रशासन दूध के इस नकली कारोबार से अनजान नहीं है।

खुद ही बनाकर खाएं तो...

मथुरा के पेड़े तो आपने जरुर खाए होंगे। यह पेड़े गाय के दूध से बनाये जाते हैं और साथ में दानेदार मावा भी डाला जाता है। मथुरा और वृन्दावन में प्रतिदिन हजारों टन पेड़े बनते और बिकते हैं, हजारों टन दूध गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा लगाने वाले श्रद्धालु गिरिराज जी को दूध चढ़ाते हैं। जब कि यहां दूध का उत्पादन इतना नहीं है। फिर भी यहां दूध की कोई कमी नहीं है...अब यह भगवान बांके बिहारी की ही महिमा है या यूरिया की यह तो मथुरा वाले ही जाने?
हमारी तो राय यही है कि वहां से तो बस प्रसाद जितना ही पेड़ा लें और बाकी इसको घर पर ही बनाएं। बहुत आसान है... तो आइये बनाते हैं मथुरा के पेड़े।
सामग्री -
खोया या मावा - 500 ग्राम
चीनी (बूरा) - 500 ग्राम
घी- 100 ग्राम
दूध- आधा कप
छोटी इलाइची - 8-10 (कुटी हुई)
विधि -
एक कढ़ाई में मावा भूनिये। इसको भूनते समय बीच-बीच में थोड़ा थोड़ा सा घी या दूध मिलाते रहिये और चला चला कर तब तक भूनिये जब तक कि वह ब्राउन कलर का न हो जाय। अगर आपको यह पेड़े कई दिनों तक चलाना हो, तो मावा को देर तक भूनना होगा। मावा को ठंडा होने दीजिये, मावा ठंडा हो जाय तब उसमें 2 कप बूरा डाल कर मिलाइये, कुटी इलाइची भी इस मिश्रण में मिला दीजिये। अब पेड़े बनाने के लिये मिश्रण हो चुका है। बचा हुआ बूरा एक प्लेट में अलग रख दीजिये और उसमें गोल-गोल तैयार किये हुए पेड़े को लपेट दीजिये। इसी तरह से थाली में एक साथ सारे पेड़े बूरे में लपेट कर रख दीजिये। अब आपके स्वादिष्ट मथुरा के पेड़े खाने के लिये बिल्कुल तैयार हैं। बचे हुये पेड़े को 2-3 घंटे के लिये खुले पंखे की हवा में छोड़ दीजिये, ये थोड़े खुश्क हो जायेंगे। आप इन मथुरा के पेड़े को एअर टाइट कन्टेनर में भर कर, फ्रिज में रख दीजिये और जब चाहें खाइये।

20120914

मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि ...देखते जाओ...देखते जाओं।

यहीं मिलेंगे VIP गेट तक ले जाने वाले।
कृष्ण जन्मभूमि के मुख्य द्वार  पर दर्शनार्थियों का रेला लगा हुआ था। स्त्री और पुरुषों की अलग-अलग लाइन लगी है।
गेट पर पहले मैनुअली एवं मेटल डिक्टेटर लगा कर दर्शनार्थियों की जांच की जा रही थी। जेब में रुपए पैसों को छोड़कर कुछ भी भीतर नहीं ले जाने दिया जा रहा था। पान-गुटका, मोबाईल इत्यादि बाहर ही रखवाया जा रहा था। ऐसे में लाइन बहुत धीरे-धीरे आगे खिसक रही है। उमस के पसीने से सब परेशान हैं। उस पर बरसात से उपजे कीचड़ और गंदगी ने हाल बेहाल कर रखा है। हमारा ग्रुप असमंजस में है कि दर्शन करें भी या नहीं?
वीआईपी गेट से बिना लाइन
इतने में एक व्यक्ति कान में आकर फुसफुसाता है कि वीआईपी गेट से बिना लाइन के दर्शन करने हों तो दो सौ रुपए लगेंगे। इस प्रस्ताव पर ग्रुप आपसी सोच विचार करता है। जैसे-जैसे निर्णय में देरी होती वैसे-वैसे दर्शन कराने वालों की रेट कम होती है। अंतत: बात सौ रुपए में तय होती है। पास के मार्केट से हमें ले जाया जाता है। बगल के एक गेट पर वाकई विशिष्ठ जनों जैसी लाल कालीन वाली व्यवस्था मिलती है। वहां तैनात सुरक्षाकर्मी भी यह जानते हैं कि हम कौन सी श्रेणी के वीआईपी हैं। इसलिए जेब से जर्दे की डिब्बी निकलवा लेते हैं। हम फिर भी शान से अंदर जाते हैं।
जड़ में बनी मस्जिद भी
मंदिर के भीतर प्रवेश द्वार के समीप जूते-चप्पल इत्यादि रखने की जगह बनी थी। वहीं हमने अपनी पादुकाएं रखी, कृष्ण कन्हाई के दर्शन करने पहुंच गए। मंदिर परिसर में अन्य तीर्थ स्थलों जैसे मनको-मूर्तियों की दुकाने लगी थी। मंदिर के आंगन में खड़े होने पर जन्मभूमि की जड़ में बनी हुई मस्जिद भी दिखाई दे रही थी। ऐसा सभी जगहों पर दिखाई देता है, जब मुगलों का शासन रहा तब उन्होने अपनी शक्ति का दुरुपयोग करते हुए हिन्दुओं के तमाम तीर्थ स्थानों पर एक मस्जिद या मजार जरुर बनवा दिया। चाहे अयोध्या हो या काशी विश्वनाथ। काशी विश्वनाथ में तो सिफऱ्  मंदिर की छत को तोड़ कर उसे मस्जिद का रुप दे दिया गया। नीवं और स्तम्भ मंदिर के ही है। चाहे हम कितने भी साम्प्रदायिक सौहाद्र की मिसाल बनने की कोशिश करें पर ऐसे हालात देख कर थोड़ा अटपटा तो लगता है। मंदिर परिसर में कैमरे नहीं ले जाने दिए जाते, अन्यथा आपको चित्र दिखाए जाते। मंदिर परिसर में ही एक कृत्रिम गुफा बनाई गयी है, इसके दर्शन करने लिए टिकिट है।
आज भी बेसुध सुरक्षाकर्मी
जन्म स्थल जेल का एक भाग है, जाहिर है जेल जैसा ही माहौल बनाए रखा गया है। एक संकरी गली से प्रवेश करा कर जन्म स्थल तक पहुंचते हैं। एक चबुतरा है, जहां जन्म होना बताया जाता है। और कुछ चाहे जैसा हो पर यहां हालात ठीक वैसे ही मिले जैसे कृष्ण जन्म के समय रहे होंगे। संयोग से वहां गेट पर तैनात एक सुरक्षा कर्मी ठीक वेैसे ही बेसुध सो रहा था जैसे कृष्ण जन्म के समय का वर्णन मिलता है।

मोक्ष प्रदाता मथुरा
भारतवर्ष में अयोध्या, मथुरा, काशी, काञ्ची, माया, अवन्ती, द्वारावती-ये मोक्ष प्रदाता सात पुरियां हैं। इन सभी पुरियों में मथुरा पुरी का विशेष महत्व है। क्यों न हो यहां पर स्वयं सच्चिदानन्द प्रभु श्री कृष्ण जी ने अवतार लिया है। प्रभु श्री कृष्ण के सुदर्शन चक्र से रक्षित इस मथुरा पुरी का महत्व बैकुण्ठ से भी अधिक माना गया है, क्योंकि इस भूमि पर किसी भी प्रकार के प्रलय आदि विकारों का प्रभाव नहीं होता। मथुरा पुरी अति प्राचीन है। त्रेता युग में भगवान श्री राम के अनुज शत्रुघ्न जी द्वारा दैत्यराज मधु के पुत्र लवणासुर का संहार करके सभी मथुरावासियों को भयमुक्त किया गया था। वहीं द्वापर युग में कंस के कारागार में श्री कृष्ण ने देवकी के गर्भ से प्रकट होकर इस नगर की महिमा को सम्पूर्ण विश्व में प्रकाशित किया। श्रीमद्भागवत के रचियता श्री व्यास जी का ब्रज से सम्बंध सर्वविदित है। श्री कृष्ण गंगा तीर्थ जो आज भी मथुरा में स्थित है, व्यास जी की तप स्थली रहा है। द्वापर में श्री कृष्ण की जन्मादि विविध लीलाओं की स्थली होने का गौरव भी इसे प्राप्त है। मथुरा नगरी में अनेक उतार-चढ़ाव आये परन्तु आज भी यमुना किनारे स्थित इस नगरी का सौन्दर्य, रमणीय वन, पतित पावनी यमुना जी के घाट एवं विभिन्न राजा और धनियों के महल और मन्दिर इस नगरी की शोभा बढ़ा रहे हैं। इस भूमि का श्री कृष्ण जी के साथ शाश्वत सम्बंध इसीलिये भी अधिक है कि उनकी पटरानी श्रीयमुना जी साक्षात कल-कल करती अपने दिव्य घाटों पर आज भी बह रही हैं।

20120911

गोकुल के गाइड से बचना...

मथुरा-वृन्दावन की यात्रा में इनदिनों बरसात से खराब रूट और ट्रैफिक जाम के साथ गोकुल की यात्रा कराने वाले गाइड्स की धोखाघड़ी भी यात्रा का मजा किरकिरा होने का कारण बन रही है।
आप चाहे भरतपुर की ओर से जा रहे हों या आगरा या दिल्ली की ओर से सभी रास्तों पर आपको गले में गमछा डाले स्थानीय गाइड़ मिल जाएंगे। रास्तों से आप बच भी गए तो मथ्ुरा और वृन्दावन के होटलों, धर्मशालाओं, रेस्टोरेन्ट्स और प्रमुख चौराहों पर ये गाइड्स आपको घेरने के लिए तैयार मिलेंगे।
ये स्थानीय गाइड्स आपकों मथुरा और वृन्दावन इतने कम पैसे में घुमाने को तैयार हो जाते हैं कि आप न केवल चौंक जाते हैं बल्कि आप के मन में यह बात भी आने लगती है कि कोई जरूरत का मारा या सीधा-साधा बन्दा है। असलियत तो तब सामने आती है जब आप इनके हाथों ठगे जा चुके होते हैं।

ये है कार्य प्रणाली

पूरे मथुरा-वृन्दावन घुमाने, कम पैसे में आवास उपलब्ध कराने, मंदिरों में बिना लाइन के भगवान के दर्शन पहले कराने और कहीं भी पार्किंग के पैसे नहीं लगने देने के बदले में केवल 51 रुपए लेने की बात होती है। उस समय आप चाहे मथुरा में हों तो चाहे कितने भी बजे हों, आपकों राम जन्म स्थल या द्वारकाधीष जैसे प्रमुख मंदिरों के पट बंद होने का समय बताया जाएगा। अगर आप वृन्दावन में हो तो भी कोई फर्क नहीं पड़ता यही बात बाकें बिहारी मंदिर या इस्कान मंदिर के लिए कही जाएगी।
इस बीच आपको यह बताया जाता है कि इस समय गोकुल में नंदभवन खुला मिलेगा, इस समय का सबसे बेहतर उपयोग वहीं हो सकता है। इस बीच अगर आप पहले ठहरने के लिए होटल या धर्मशाला दिखाने की बात करें तो चैकइन और चैकआउट टाइम की समस्या बताकर इतनी आत्मीयता से यह सलाह दी जाएगी कि गोकुल से लौटकर यहां ठहरने की व्यवस्था करना अधिक सुगम होगा। जब आप सोच-विचार कर रहेे होंगे तब तक गोकुल में कृष्ण की बाल लीलाएं, नंदभवन और गोपी-ग्वालों को ऐसा चित्रण किया जाएगा कि आपको भी यह लगने लगेगा कि क्यों न जब इतनी दूर आएं हैं तो गोकुल को भी निपटा ही लिया जाए।
मथुरा से गोकुल
मथुरा से गोकुल तक के लगभग 15 किलोमीटर के सफर के बीच मथुरा के सिविल लाइन्स और सैनिक छावनी से गुजरते हुए गाइड गोकुल और उनसे जुडे भगवान कृष्ण, उनके भाई बलदेव, नंदबाबा, माता यशोदा के साथ वहां की गायों और दूध-दही की गाथा शुरू कर देते हैं। इस वर्णन के बीच-बीच में भगवान के जयकारे लगवाते रहते हैं, जैसा किसी सत्संग में या कथा में होता है। औरंगाबाद की गलियों से गुजरते हुए खामोशी रहती है, फिर चंदनबन की हरियाली और नए गोकुल गांव के घुमावदार रास्तों पर फिर यही क्रम शुरू हो जाता है। महावन कहाने वाले पुराने गोकुल में आते-आते वासुदेव द्वारा नवजात कृष्ण को नंदबाबा के यहां पहुंचाने और अब मंदिर में उन्हें पालने में झुलाने का अवसर पाने के लिए आपके सौभाग्य की सराहना करने के साथ ही गोकुल की गायों और वहां उनके लिए संचालित गऊशालाओं की विशालता और स्थिति का वर्णन होता है।

आ गया गोकुल

यहां नंदबाबा के अतिप्राचीन आवास के रूप में चौरासी खंबों का मंदिर बताया जाता है और साथ ही नंदबाबा की संपन्नता का वर्णन करते हुए उनके पास एक लाख गायों की सम्पत्ति की बात होती है। मंदिर में एक बार में एक ही गाइड के साथ आए हुए दर्शनार्थियों को बारी-बारी से जाने दिया जाता है। जब तक आगे वाले ग्रुप के दर्शन हो रहे होते हैं तब तक पीछे के ग्रुप को प्रतीक्षा में बिठा दिया जाता है और दस दौरान भी गाइड द्वारा इस स्थान को महिमामंडित करने के प्रवचन चलते रहते हैं। यह भी बताया जाता है कि मंदिर में खड़े रह कर दर्शन नहीं करने चाहिए, क्योंकि ऐसे मेें भगवान की प्रतिमा पर आपकी छाया पड़ सकती है जो उचित नहीं।
अब संकल्प
मंदिर प्रवेश के बाद आपको दर्शन के लिए भगवान के सामने बिठा दिया जाता है। यहां मंदिर के पुजारी दर्शन के दौरान आपका परिचय प्राप्त करते हैं और फिर किसी पंडे की तरह आपके नगर की किसी बस्ती या कॉलोनी का उल्लेख करते हुए आपसे अपनी निकटता स्थापित करते हैं। इसके बाद आपको उस पालने की डोर भी थमाई जाती है जिसमें बाल कृष्ण झूल रहे हैं। उसके बाद आपको यहां तक लाने के प्रमुख उदेश्य की कार्यवाही शुरू होती है। आपको यहां कि गौशाला में पल रही गायों के लिए दान देने को कहा जाता है। इसके लिए भी कुछ स्कीमें बताई जाती है। एक गऊदान या गोद लेने के 11 हजार रुपए से शुरू करके कुछ गायों के लिए 551 रुपए तक की स्कीमें हैं। आपके सोच-विचार करने तक आपको लगभग पकड़ कर बिठाए रखा जाता है और ना-ना करते भी सपत्निक 551 रुपए का संकल्प तो आप कर ही लेते हैं। अब आपके ग्रुप में कितने जोड़े हैं यह आप जाने।

ढूंढते रह जाएंगे

गाइड के प्रवचनों से सम्मोहित आपको अपनी धार्मिक यात्रा में यह दान कोर्ई ज्यादा नहीं लगता। गोकुल से वापस मथुरा की यात्रा के दौरान गाइड़ का फोन बजने लगता और वह आपको यह जानकारी देता है कि उसे कोई जरूरी काम हो जाने के कारण बीच में ही उतरना पड़ रहा है। वह आपको बताता है कि अब आगे की यात्रा कराने के लिए उसका कोई भाई आपके साथ रहेगा जो आपको आगे मथुरा में फलां-फलां प्रमुख चौराहे मिलेगा। अब गाइड आपसे उन 51 रुपयों से दस या बीस रुपए देने की बात भी कहेगा जो पहले मथुरा-वृन्दावन घुमाने के लिए तय हुए थे। यह भी कहा जाएगा कि बाकी के पैसे आप भाई को दे देना। आपको भाई का हुलिये का वर्णन भी किया जाएगा। मथुरा पहुंच कर निर्धारित चौराहे पर आप उस हुलिए के भाई को ढूंढते रह जाएंगे जो आपको कभी नहीं मिलेगा।

श्री कृष्ण ही जाने

अपने बल पर मथुरा-वृन्दावन घुमते हुए और भी कई गाइड्स से घुमाने की बात की पर जब भी उन्हें यह बताया जाता कि हम गोकुल घूम चुके हैं, वे मुस्कुरा के आगे बढ़ जाते। अब श्री कृष्ण ही जाने कि उनकी गायों के लिए मांगे गए दान की राशी में कितना भाग पंडितजी का है और कितना गाइड का? मथुरा-वृन्दावन में शायद ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है...इसलिए गाइड भी नहीं हैं।