20120911

गोकुल के गाइड से बचना...

मथुरा-वृन्दावन की यात्रा में इनदिनों बरसात से खराब रूट और ट्रैफिक जाम के साथ गोकुल की यात्रा कराने वाले गाइड्स की धोखाघड़ी भी यात्रा का मजा किरकिरा होने का कारण बन रही है।
आप चाहे भरतपुर की ओर से जा रहे हों या आगरा या दिल्ली की ओर से सभी रास्तों पर आपको गले में गमछा डाले स्थानीय गाइड़ मिल जाएंगे। रास्तों से आप बच भी गए तो मथ्ुरा और वृन्दावन के होटलों, धर्मशालाओं, रेस्टोरेन्ट्स और प्रमुख चौराहों पर ये गाइड्स आपको घेरने के लिए तैयार मिलेंगे।
ये स्थानीय गाइड्स आपकों मथुरा और वृन्दावन इतने कम पैसे में घुमाने को तैयार हो जाते हैं कि आप न केवल चौंक जाते हैं बल्कि आप के मन में यह बात भी आने लगती है कि कोई जरूरत का मारा या सीधा-साधा बन्दा है। असलियत तो तब सामने आती है जब आप इनके हाथों ठगे जा चुके होते हैं।

ये है कार्य प्रणाली

पूरे मथुरा-वृन्दावन घुमाने, कम पैसे में आवास उपलब्ध कराने, मंदिरों में बिना लाइन के भगवान के दर्शन पहले कराने और कहीं भी पार्किंग के पैसे नहीं लगने देने के बदले में केवल 51 रुपए लेने की बात होती है। उस समय आप चाहे मथुरा में हों तो चाहे कितने भी बजे हों, आपकों राम जन्म स्थल या द्वारकाधीष जैसे प्रमुख मंदिरों के पट बंद होने का समय बताया जाएगा। अगर आप वृन्दावन में हो तो भी कोई फर्क नहीं पड़ता यही बात बाकें बिहारी मंदिर या इस्कान मंदिर के लिए कही जाएगी।
इस बीच आपको यह बताया जाता है कि इस समय गोकुल में नंदभवन खुला मिलेगा, इस समय का सबसे बेहतर उपयोग वहीं हो सकता है। इस बीच अगर आप पहले ठहरने के लिए होटल या धर्मशाला दिखाने की बात करें तो चैकइन और चैकआउट टाइम की समस्या बताकर इतनी आत्मीयता से यह सलाह दी जाएगी कि गोकुल से लौटकर यहां ठहरने की व्यवस्था करना अधिक सुगम होगा। जब आप सोच-विचार कर रहेे होंगे तब तक गोकुल में कृष्ण की बाल लीलाएं, नंदभवन और गोपी-ग्वालों को ऐसा चित्रण किया जाएगा कि आपको भी यह लगने लगेगा कि क्यों न जब इतनी दूर आएं हैं तो गोकुल को भी निपटा ही लिया जाए।
मथुरा से गोकुल
मथुरा से गोकुल तक के लगभग 15 किलोमीटर के सफर के बीच मथुरा के सिविल लाइन्स और सैनिक छावनी से गुजरते हुए गाइड गोकुल और उनसे जुडे भगवान कृष्ण, उनके भाई बलदेव, नंदबाबा, माता यशोदा के साथ वहां की गायों और दूध-दही की गाथा शुरू कर देते हैं। इस वर्णन के बीच-बीच में भगवान के जयकारे लगवाते रहते हैं, जैसा किसी सत्संग में या कथा में होता है। औरंगाबाद की गलियों से गुजरते हुए खामोशी रहती है, फिर चंदनबन की हरियाली और नए गोकुल गांव के घुमावदार रास्तों पर फिर यही क्रम शुरू हो जाता है। महावन कहाने वाले पुराने गोकुल में आते-आते वासुदेव द्वारा नवजात कृष्ण को नंदबाबा के यहां पहुंचाने और अब मंदिर में उन्हें पालने में झुलाने का अवसर पाने के लिए आपके सौभाग्य की सराहना करने के साथ ही गोकुल की गायों और वहां उनके लिए संचालित गऊशालाओं की विशालता और स्थिति का वर्णन होता है।

आ गया गोकुल

यहां नंदबाबा के अतिप्राचीन आवास के रूप में चौरासी खंबों का मंदिर बताया जाता है और साथ ही नंदबाबा की संपन्नता का वर्णन करते हुए उनके पास एक लाख गायों की सम्पत्ति की बात होती है। मंदिर में एक बार में एक ही गाइड के साथ आए हुए दर्शनार्थियों को बारी-बारी से जाने दिया जाता है। जब तक आगे वाले ग्रुप के दर्शन हो रहे होते हैं तब तक पीछे के ग्रुप को प्रतीक्षा में बिठा दिया जाता है और दस दौरान भी गाइड द्वारा इस स्थान को महिमामंडित करने के प्रवचन चलते रहते हैं। यह भी बताया जाता है कि मंदिर में खड़े रह कर दर्शन नहीं करने चाहिए, क्योंकि ऐसे मेें भगवान की प्रतिमा पर आपकी छाया पड़ सकती है जो उचित नहीं।
अब संकल्प
मंदिर प्रवेश के बाद आपको दर्शन के लिए भगवान के सामने बिठा दिया जाता है। यहां मंदिर के पुजारी दर्शन के दौरान आपका परिचय प्राप्त करते हैं और फिर किसी पंडे की तरह आपके नगर की किसी बस्ती या कॉलोनी का उल्लेख करते हुए आपसे अपनी निकटता स्थापित करते हैं। इसके बाद आपको उस पालने की डोर भी थमाई जाती है जिसमें बाल कृष्ण झूल रहे हैं। उसके बाद आपको यहां तक लाने के प्रमुख उदेश्य की कार्यवाही शुरू होती है। आपको यहां कि गौशाला में पल रही गायों के लिए दान देने को कहा जाता है। इसके लिए भी कुछ स्कीमें बताई जाती है। एक गऊदान या गोद लेने के 11 हजार रुपए से शुरू करके कुछ गायों के लिए 551 रुपए तक की स्कीमें हैं। आपके सोच-विचार करने तक आपको लगभग पकड़ कर बिठाए रखा जाता है और ना-ना करते भी सपत्निक 551 रुपए का संकल्प तो आप कर ही लेते हैं। अब आपके ग्रुप में कितने जोड़े हैं यह आप जाने।

ढूंढते रह जाएंगे

गाइड के प्रवचनों से सम्मोहित आपको अपनी धार्मिक यात्रा में यह दान कोर्ई ज्यादा नहीं लगता। गोकुल से वापस मथुरा की यात्रा के दौरान गाइड़ का फोन बजने लगता और वह आपको यह जानकारी देता है कि उसे कोई जरूरी काम हो जाने के कारण बीच में ही उतरना पड़ रहा है। वह आपको बताता है कि अब आगे की यात्रा कराने के लिए उसका कोई भाई आपके साथ रहेगा जो आपको आगे मथुरा में फलां-फलां प्रमुख चौराहे मिलेगा। अब गाइड आपसे उन 51 रुपयों से दस या बीस रुपए देने की बात भी कहेगा जो पहले मथुरा-वृन्दावन घुमाने के लिए तय हुए थे। यह भी कहा जाएगा कि बाकी के पैसे आप भाई को दे देना। आपको भाई का हुलिये का वर्णन भी किया जाएगा। मथुरा पहुंच कर निर्धारित चौराहे पर आप उस हुलिए के भाई को ढूंढते रह जाएंगे जो आपको कभी नहीं मिलेगा।

श्री कृष्ण ही जाने

अपने बल पर मथुरा-वृन्दावन घुमते हुए और भी कई गाइड्स से घुमाने की बात की पर जब भी उन्हें यह बताया जाता कि हम गोकुल घूम चुके हैं, वे मुस्कुरा के आगे बढ़ जाते। अब श्री कृष्ण ही जाने कि उनकी गायों के लिए मांगे गए दान की राशी में कितना भाग पंडितजी का है और कितना गाइड का? मथुरा-वृन्दावन में शायद ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है...इसलिए गाइड भी नहीं हैं।

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