20120914

मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि ...देखते जाओ...देखते जाओं।

यहीं मिलेंगे VIP गेट तक ले जाने वाले।
कृष्ण जन्मभूमि के मुख्य द्वार  पर दर्शनार्थियों का रेला लगा हुआ था। स्त्री और पुरुषों की अलग-अलग लाइन लगी है।
गेट पर पहले मैनुअली एवं मेटल डिक्टेटर लगा कर दर्शनार्थियों की जांच की जा रही थी। जेब में रुपए पैसों को छोड़कर कुछ भी भीतर नहीं ले जाने दिया जा रहा था। पान-गुटका, मोबाईल इत्यादि बाहर ही रखवाया जा रहा था। ऐसे में लाइन बहुत धीरे-धीरे आगे खिसक रही है। उमस के पसीने से सब परेशान हैं। उस पर बरसात से उपजे कीचड़ और गंदगी ने हाल बेहाल कर रखा है। हमारा ग्रुप असमंजस में है कि दर्शन करें भी या नहीं?
वीआईपी गेट से बिना लाइन
इतने में एक व्यक्ति कान में आकर फुसफुसाता है कि वीआईपी गेट से बिना लाइन के दर्शन करने हों तो दो सौ रुपए लगेंगे। इस प्रस्ताव पर ग्रुप आपसी सोच विचार करता है। जैसे-जैसे निर्णय में देरी होती वैसे-वैसे दर्शन कराने वालों की रेट कम होती है। अंतत: बात सौ रुपए में तय होती है। पास के मार्केट से हमें ले जाया जाता है। बगल के एक गेट पर वाकई विशिष्ठ जनों जैसी लाल कालीन वाली व्यवस्था मिलती है। वहां तैनात सुरक्षाकर्मी भी यह जानते हैं कि हम कौन सी श्रेणी के वीआईपी हैं। इसलिए जेब से जर्दे की डिब्बी निकलवा लेते हैं। हम फिर भी शान से अंदर जाते हैं।
जड़ में बनी मस्जिद भी
मंदिर के भीतर प्रवेश द्वार के समीप जूते-चप्पल इत्यादि रखने की जगह बनी थी। वहीं हमने अपनी पादुकाएं रखी, कृष्ण कन्हाई के दर्शन करने पहुंच गए। मंदिर परिसर में अन्य तीर्थ स्थलों जैसे मनको-मूर्तियों की दुकाने लगी थी। मंदिर के आंगन में खड़े होने पर जन्मभूमि की जड़ में बनी हुई मस्जिद भी दिखाई दे रही थी। ऐसा सभी जगहों पर दिखाई देता है, जब मुगलों का शासन रहा तब उन्होने अपनी शक्ति का दुरुपयोग करते हुए हिन्दुओं के तमाम तीर्थ स्थानों पर एक मस्जिद या मजार जरुर बनवा दिया। चाहे अयोध्या हो या काशी विश्वनाथ। काशी विश्वनाथ में तो सिफऱ्  मंदिर की छत को तोड़ कर उसे मस्जिद का रुप दे दिया गया। नीवं और स्तम्भ मंदिर के ही है। चाहे हम कितने भी साम्प्रदायिक सौहाद्र की मिसाल बनने की कोशिश करें पर ऐसे हालात देख कर थोड़ा अटपटा तो लगता है। मंदिर परिसर में कैमरे नहीं ले जाने दिए जाते, अन्यथा आपको चित्र दिखाए जाते। मंदिर परिसर में ही एक कृत्रिम गुफा बनाई गयी है, इसके दर्शन करने लिए टिकिट है।
आज भी बेसुध सुरक्षाकर्मी
जन्म स्थल जेल का एक भाग है, जाहिर है जेल जैसा ही माहौल बनाए रखा गया है। एक संकरी गली से प्रवेश करा कर जन्म स्थल तक पहुंचते हैं। एक चबुतरा है, जहां जन्म होना बताया जाता है। और कुछ चाहे जैसा हो पर यहां हालात ठीक वैसे ही मिले जैसे कृष्ण जन्म के समय रहे होंगे। संयोग से वहां गेट पर तैनात एक सुरक्षा कर्मी ठीक वेैसे ही बेसुध सो रहा था जैसे कृष्ण जन्म के समय का वर्णन मिलता है।

मोक्ष प्रदाता मथुरा
भारतवर्ष में अयोध्या, मथुरा, काशी, काञ्ची, माया, अवन्ती, द्वारावती-ये मोक्ष प्रदाता सात पुरियां हैं। इन सभी पुरियों में मथुरा पुरी का विशेष महत्व है। क्यों न हो यहां पर स्वयं सच्चिदानन्द प्रभु श्री कृष्ण जी ने अवतार लिया है। प्रभु श्री कृष्ण के सुदर्शन चक्र से रक्षित इस मथुरा पुरी का महत्व बैकुण्ठ से भी अधिक माना गया है, क्योंकि इस भूमि पर किसी भी प्रकार के प्रलय आदि विकारों का प्रभाव नहीं होता। मथुरा पुरी अति प्राचीन है। त्रेता युग में भगवान श्री राम के अनुज शत्रुघ्न जी द्वारा दैत्यराज मधु के पुत्र लवणासुर का संहार करके सभी मथुरावासियों को भयमुक्त किया गया था। वहीं द्वापर युग में कंस के कारागार में श्री कृष्ण ने देवकी के गर्भ से प्रकट होकर इस नगर की महिमा को सम्पूर्ण विश्व में प्रकाशित किया। श्रीमद्भागवत के रचियता श्री व्यास जी का ब्रज से सम्बंध सर्वविदित है। श्री कृष्ण गंगा तीर्थ जो आज भी मथुरा में स्थित है, व्यास जी की तप स्थली रहा है। द्वापर में श्री कृष्ण की जन्मादि विविध लीलाओं की स्थली होने का गौरव भी इसे प्राप्त है। मथुरा नगरी में अनेक उतार-चढ़ाव आये परन्तु आज भी यमुना किनारे स्थित इस नगरी का सौन्दर्य, रमणीय वन, पतित पावनी यमुना जी के घाट एवं विभिन्न राजा और धनियों के महल और मन्दिर इस नगरी की शोभा बढ़ा रहे हैं। इस भूमि का श्री कृष्ण जी के साथ शाश्वत सम्बंध इसीलिये भी अधिक है कि उनकी पटरानी श्रीयमुना जी साक्षात कल-कल करती अपने दिव्य घाटों पर आज भी बह रही हैं।

कोई टिप्पणी नहीं: