20081212

सबसे बडी ओपन आर्ट-गैलरी

शेखावटी की हवेलियों को दुनिया की सबसे बडी ओपन आर्ट-गैलरी की भी संज्ञा दी जाती है। इन हवेलियों पर बने चित्र शेखावटी इलाके की लोक रीतियों, त्योहारों, देवी-देवताओं और मांगलिक संस्कारों से परिचय कराते हैं। ये इस इलाके के धनाड्य व्यक्तियों की कलात्मक रुचि की भी गवाही देते हैं। यूं तो इस इलाके में चित्रकारी की परंपरा छतरियों, दीवारों, मंदिरों, बावडियों और किलों-बुर्जो पर जहां-तहां बिखरी है। लेकिन धनकुबेरों की हवेलियां इस कला की खास संरक्षक बनकर रहीं। अ‌र्द्ध-रेगिस्तानी शेखावटी इलाका राव शेखाजी (1433-1488 ईस्वी) के नाम पर अस्तित्व में आया। व्यवसायी मारवाडी समुदाय का गढ यह इलाका कुबेरों की धरती, लडाकों की धरती, उद्यमियों की धरती, कलाकारों की धरती आदि कई नाम से जाना जाता है। अब यह इलाका अपनी हवेलियों और ऑर्गेनिक फार्मिग के लिए चर्चा में है।

शुरुआती दौर की पेंटिंग गीले प्लास्टर पर इटालियन शैली में चित्रित किए गए हैं, जिस शैली को फ्रेस्को बुआनो कहते हैं। इसमें चूना पलस्तर के सूखने की प्रक्रिया में ही रंगाई का सारा काम हो जाता था। वही इसकी दीर्घजीविता की भी वजह हुआ करती थी। कहा जाता है कि यह शैली मुगल दरबार से होती हुई पहले जयपुर और फिर वहां से शेखावटी तक पहुंची। मुगलकाल में यह कला यूरोपीय मिशनरियों के साथ भारत पहुंची थी। शुरुआती दौर के चित्रों में प्राकृतिक, वनस्पति व मिट्टी के रंगों का इस्तेमाल किया गया था। बाद के सालों में रसायन का इस्तेमाल शुरू हुआ और यह चित्रकारी गीले के बजाय सूखे पलस्तर पर रसायनों से की जाने लगी।

जानकार इस कला के विकास को यहां के वैश्यों की कारोबारी तरक्की से भी जोडते हैं। हालांकि अब आप इस इलाके में जाएं तो वह संपन्नता भले ही बिखरी नजर न आए लेकिन कुछ हवेलियों में चित्रकारी बेशक सलामत नजर आ जाती है। चित्रकारी की परंपरा यहां कब से रही, इसका ठीक-ठीक इतिहास तो नहीं मिलता। अभी जो हवेलियां बची हैं, उनकी चित्रकारी 19वीं सदी के आखिरी सालों की बताई जाती हैं। यकीनन उससे पहले के दौर में भी यह परंपरा रही होगी लेकिन रख-रखाव न होने के कारण कालांतर में वे हवेलियां गिरती रहीं। लेकिन हवेलियों में चित्र बनाने की परंपरा इस कदर कायम रही कि वर्ष 1947 से पहले बनी ज्यादातर हवेलियों में यह छटा बिखरी मिल जाती है।

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